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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

चेहरा

आज बहुत थक सा गया हूँ
ना जाने कितने रूप में 
छाँव में और धुप में
पहन पहन कर
बदल बदल कर
अपनों में ही खो गया हूँ
पागल सा मै हो गया हूँ  
अब तो मै क्या हूँ
और था मै क्या पहले,
कुछ भी तो याद नहीं है 
दुनिया के इस रंग मंच पे 
कितने किरदारों का
चोला मैंने पहना है
नित नई कहानी नया सबेरा 
नया मुखौटा पहना है
आज लौटना चाहा अपने
असली वाले चोले  में 
लौट न पाया यही रह गया
अपने बनाये झमेले में
कभी देखता मै आईने में
तो देख के उसमे इस चेहरे को  
पता नहीं ये कौन है कैसा 
किसका नया ये जामा है
 मेरा चेहरा कैसा था 
अब तो यह भी याद नहीं
जैसे रेतों के भव्य इमारत 
की कोई बुनियाद नहीं








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