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सोमवार, 9 अप्रैल 2018

चिट्ठी


कुछ बरस ही बीते होंगे
चिट्ठी का औचित्य ख़तम हुए
पर वह संवेदना और भावना
आज कहाँ है इन यस-यम-यस
और ई-मेल में
कहाँ है इसमें मन का प्यार
चहुँ ओर है केवल व्यभिचार
कहाँ है इसमें मन की बातें
यहाँ तो है केवल लोकाचार
यादों को कुरेद कर
छोटे से टुकड़े पर
जब मन की अस्थिरता
स्याही के माध्यम से
ढलकती है उन कागज पर
तब ना जाने कितने मीलों को पार कर
यह पहुचती है अपने प्रियतम के पास
तब सब्र की इंतिहा भी
टूट जाया करती है
और उसे छूने और पढने
की ललक लिए आपोआप
कर बढ़ते चले जाते है
अपने यादों को सहेजकर
और अतीत से नाता जोड़कर
उस भीनी भीनी सुगंध
को महसूस कर
रोम-रोम में प्रेम-रस  
और नैन पलट में शबनम
प्रस्फुटित होता है
काश फिर वही चलन चल जाये
चिट्ठियां आये और जाये
शायद ऐसा मुमकिन न हो
यह सोचकर मन कुंठित होता है