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बुधवार, 19 जुलाई 2017

सूखा सावन



अंखिया एकटक राह निहारे, बेर हुई है मोरे साजन
बिरहिन बरखा जिया जरावे हमका लागे सूखा सावन
नित रैना में करवट फेरूँ, दिवस भये अब मासा
राह तकत है सूने नैना छाई है घोर निराशा
बलम घर छोडि बिदेश बसे है दरद न समझे मन की
सेजिया भई रे कारी नगिनिया अहक मिटे न मोरे तन की
केसी कहें हम मन की बतिया, रतिया भइल पहाड़
जुल्मी बदरिया चम चम चमके, बेधत करेजवा में बाण
कब ले सम्भारी कैसे उतारी भईल जोबन अब बोझ
देहिया पे नेहिया के नशा चढल बा, टप टप टपकेला रोज
अब तो सुधि लो मोर बलम जी बीता जाये सावन
पूरा करदा मोर अरमनवा बिनती करी मनभावन