आंसू देना ही था इन आँखों को तो ख्वाब क्यों दिखाया | छलका भी दूँ इसे तो कैसे जिसमे बसा है तेरा साया ||
बुधवार, 17 अगस्त 2011
परदेश
तुझको कैसे समझाउं,
झूठी आशा कैसे दिलाऊ
मै किस भेष में हूँ
तनहा परदेश में हूँ
आया जब संदेशा उसका
पढ़ ना पाया हाल उसका
रुंधे गले से आवाज न निकली
यांदों कि आगोश में हूँ
क्यों कि मै परदेश में हूँ
रो रो के दिल अपना तुमने
हल्का तो कर लिया होगा
रो भी नहीं सका मै खुल के
क्योंकि मै बे -होश में हूँ
तनहा परदेश में हूँ
कसक उठी मेरे मन में एक
सपनों में पाया तुझको देख
लौट कर भी आ नहीं सकता
मै एक अंदेश में हूँ
तनहा परदेश में हूँ
ना कर मजबूर मेरी "जान"
कहना मेरा ले तू मान
तू है परेशां वहां पे
तो यहाँ खुश मै भी नहीं हूँ
क्यों कि मै परदेश में हूँ
सात समन्दर पार से
एक दिन वापस आऊंगा
खुशियाँ मिलकर बाटेंगे
तब मै यह कहूँगा कि
मै अपने देश में हूँ
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