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गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

दिल के आँगन में कोई आया है

आज फिर से अपने आप को पुरानी राहों में पाया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है
सपनों की दुनियां में जहाँ दो परवाने बसते थे
खिलते थे फूल वहां पर और कलियाँ चहकते थे
साथ में अपने वो बहारें आज फिर से लाया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है 
उसके आने से खिल गयी जीवन की हर कली
सांसों में ऐसी खुशबू जैसे मुझे थी पहले मिली
भीगी जुल्फों में से जैसे आज सावन आया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है
नशा उसकी आँखों का था ऐसा आज तक उतरा नहीं
सारे मयखाने में उस नशे का एक बूंद का कतरा नहीं
उसे पाकर मैंने दुनियाँ की जैसे सारी जन्नत पाया है
ऐसा लगता है फिर दिल के आँगन में कोई आया है