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शनिवार, 28 अप्रैल 2018

रिश्ते


दूर जाने से रिश्ते टूटा नहीं करते
गुस्से से मन का गुबार फूटा नहीं करते
लोगों का क्या है सिर्फ, एक बहाना चाहिए
यह बंधन है दिलों का इसे निभाना चाहिए

पुराने हो या नये, चोट कितने भी हो दिए
कोई रूठ जाता है कोई मान जाता है
उनके लिए दिल में प्यार है यह जताना चाहिए
यह बंधन है दिलों का इसे निभाना चाहिए

मुक्कदर में है तभी तो मिलते है
फुल रूपी रिश्ते तभी तो खिलते है
निःस्वार्थ भाव से मिलने आना चाहिए
यह बंधन है दिलों का इसे निभाना चाहिए

छोटी-छोटी बातों पे रूठ जाते है
अनजाने में उनसे हाथ छुट जाते है
वक्त के साथ झुक जाना चाहिए
यह बंधन है दिलों का इसे निभाना चाहिए

कोई नाम नहीं होता दिल से बने रिश्तों का
मोहताज नहीं ये झूठे प्यार के किस्तों का
सारी दुनियाँ को ये “राज” बताना चाहिए
यह बंधन है दिलों का इसे निभाना चाहिए

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

बड़ा मज़ा मेरे गाँव में


पीपल, बरगद के छाँव में
था बड़ा मज़ा मेरे गाँव में |
कहाँ से कहाँ ये गया जमाना
नहीं दिखता अब चीज़ पूराना
अब धुल न लगती पाँव में
था बड़ा मज़ा मेरे गाँव में ||
धोती कुरता सब छूटा भाई
कमर बेल्ट लटकी गर टाई
टाईट जींस है पाँव में  
था बड़ा मज़ा मेरे गाँव में |||
बेना पंखी छुट गया सब
कूलर एसी जगह ले लिए अब
कहाँ खो गयी शुद्ध हवा अब  
जो मिलती झुरमुट के छाँव में
था बड़ा मज़ा मेरे गाँव में |V
उपर-नीचे सेहत होती  
स्वस्थ शरीर को आत्मा रोती
सब रोग-दोष की दवा है मिलती
बड़े बुजुर्ग के पाँव में
था बड़ा मज़ा मेरे गाँव में V
सादा सरल गाँव का जीवन
भीड़-भाड़ और शहर में अनबन
कितना पाए किसका ले लें
सब अपने-अपने है दांव में
था बड़ा मज़ा मेरे गाँव में VI

सोमवार, 9 अप्रैल 2018

चिट्ठी


कुछ बरस ही बीते होंगे
चिट्ठी का औचित्य ख़तम हुए
पर वह संवेदना और भावना
आज कहाँ है इन यस-यम-यस
और ई-मेल में
कहाँ है इसमें मन का प्यार
चहुँ ओर है केवल व्यभिचार
कहाँ है इसमें मन की बातें
यहाँ तो है केवल लोकाचार
यादों को कुरेद कर
छोटे से टुकड़े पर
जब मन की अस्थिरता
स्याही के माध्यम से
ढलकती है उन कागज पर
तब ना जाने कितने मीलों को पार कर
यह पहुचती है अपने प्रियतम के पास
तब सब्र की इंतिहा भी
टूट जाया करती है
और उसे छूने और पढने
की ललक लिए आपोआप
कर बढ़ते चले जाते है
अपने यादों को सहेजकर
और अतीत से नाता जोड़कर
उस भीनी भीनी सुगंध
को महसूस कर
रोम-रोम में प्रेम-रस  
और नैन पलट में शबनम
प्रस्फुटित होता है
काश फिर वही चलन चल जाये
चिट्ठियां आये और जाये
शायद ऐसा मुमकिन न हो
यह सोचकर मन कुंठित होता है

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

कफ़न के लिए

मिट्टी से जन्मा, मिट्टी में खेला
मानव का तन सृजन के लिए
मिट्टी ही पहली बनी आधार
इस मानव के बचपन के लिए
नन्हे क़दमों ने जोर लगाया
गया मदरसा अध्ययन के लिए
हुई पढाई पूरी अब तो
योग्य हुआ चिंतन मनन के लिए
एक दिन सोचा मै भी बनाऊं
एक आशियाना रहन सहन के लिए
मिट्टी का ही बना घरौंदा
हुआ तैयार अब “लगन” के लिए
नया हमसफ़र आया उसका
खुश थे दोनों नए जीवन के लिए
जीवन की नैया डोल रही थी |
कुछ आगे बढते बोल रही थी ||
क्यों मानव के दिल औ दिमाग में
क्या यही है सब कुछ चमन के लिए
ये प्रेम नहीं है, है यह वासना
मिलन है यह तो दो बदन के लिए
प्रगाढ़ प्रेम जब बढ जाता है
तब बचता नहीं कुछ हनन के लिए
चेत ले मानव अब भी समय है
कुछ समय शेष है तेरे गमन के लिए
नास्तिक छोड़ आस्तिक बन जा अब
कुछ ध्यान लगा प्रभु भजन के लिए
वरना यह मिट्टी फिर मिट्टी बनकर
सड़ती रहेगी एक कफ़न के लिए