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मंगलवार, 20 नवंबर 2012

फिर भी क्यों अनजान है हम

इस रंग बदलती दुनियां से परेशान है हम, अनजान है हम
समय का पहिया रुकता नहीं है फिर भी क्यों अनजान है हम
आया है याद वो फिर से अपना, बीत चूका है जो है सपना
बीता लड़कपन आई जवानी, कैसे कह दें की वो था अपना
भीड़-भाड़ की इस दुनियां में आज कितने बे जान है हम 
यारों के संग धूम मचाना, गलियों में था आना जाना 
खेतों में की वह हरियाली, चिड़ियों का था चह- चहाना 
मानव की कु- बोली से आज कितने नादान है हम
नदी का किनारा और साँझ की लालिमा लिए हुए 
कल-कल करता बहता पानी, पूरी मस्ती लिए हुए 
आज कहता है की सारे बीमारी की पहचान है हम 
आज जो हो वो पहले ना था, ऐसे बयार है चली 
भौतिक सुख के लोभ में आकर, आज की पीढ़ी कहाँ चली 
ऐसी करनी से राम बचाए इंसान नहीं हैवान है हम