पृष्ठ

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

याद आई है

आज फिर वही बात याद आई है
मेरे मन को धीरे से गुदगुदाई है
तेरा आना और कानों में कोई
नए सुर  की लहर दे जाना
आखों में तेरा वो खिला चेहरा
साया बनकर रूप तेरा लायी है
तेरे होठों के लरजते पट पर
वो हंसी और वो सवरते गेशु
आज काली घटा बनकर छाई है
वो बनना सवरना और मन को लुभाना
रूठी हो सजनी तो बाँहों में भरकर
हंसी ख्वाब बनकर रातों में आई है
आज फिर वही बात याद आई है
मेरे मन को धीरे से गुदगुदाई है 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें