कड़ी धुप में हल
चलाता
ना-नुकुर न करने आता
सख्त धरा का उर
चीरकर
सबके लिए अन्न उगाता
उदर सभी का वो है
भरता |
और बेचारा वो क्या
करता ||
फटी तौलिये को ओढ़कर
ठिठुरन से स्वयं को
बचाता
पड़े अकाल प्रकृति
आपदा
बैठ निरुत्तर आहें
भरता
प्रलय-प्रवाह से वो
है डरता |
और बेचारा वो क्या
करता ||
रुखी सुखी रोटी खाके
उगा रहा है वो धन-धान
मिले पेट भर सबको भोजन
पर किस-किस ने दिया
ध्यान?
शहर-गाँव का दुःख है
हरता |
और बेचारा वो क्या
करता ||
महंगे हो गए बीज और
पानी
आगे चलेगी कैसे किसानी
लाभ नहीं है इसमें
है हानि
हर किसान की यही
कहानी
यह सोचकर एक निर्णय
करता |
इसलिए किसान
आत्महत्या करता ||