सुना था की खुशियों के चमन की कल्पना हर इंसान करता है
हम भी इस ख़ुशी में शरीक हुए तो क्या गुनाह किया
इस भरी दुनियां में हर दर पे सरों को झुकते हुए देखा है
हमने रब से सर- ए -ताज की तम्मना की तो क्या गुनाह किया
हर कोई दिल में एक नफ़रत की आग लिए बैठा नजर आता है
इस जख्म- ए -दिल के लिए प्यार की दुआ की तो क्या गुनाह किया
उम्र भर बेगानों की ख़ुशी को अपनी ख़ुशी समझते रह गए
ख्वाब में खुद के लिए गर दुआ निकली तो क्या गुनाह किया
"राज" ने राज को राज ही रहने दिया तो क्या गुनाह किया
हम भी इस ख़ुशी में शरीक हुए तो क्या गुनाह किया
इस भरी दुनियां में हर दर पे सरों को झुकते हुए देखा है
हमने रब से सर- ए -ताज की तम्मना की तो क्या गुनाह किया
हर कोई दिल में एक नफ़रत की आग लिए बैठा नजर आता है
इस जख्म- ए -दिल के लिए प्यार की दुआ की तो क्या गुनाह किया
उम्र भर बेगानों की ख़ुशी को अपनी ख़ुशी समझते रह गए
ख्वाब में खुद के लिए गर दुआ निकली तो क्या गुनाह किया
सारा आलम अपने राज को सरेआम किये बैठा है